Hariyali Teej 2025: जानिए इस साल कैसे मनाएं ये खास व्रत? पूजा विधि और महत्व

Harsh

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Hariyali Teej भारत की पारंपरिक संस्कृति और धार्मिक आस्था का एक खास पर्व है। यह त्योहार मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है और इसमें वे अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की खुशियों के लिए व्रत रखती हैं। यह पर्व सावन के महीने में आता है जब चारों ओर हरियाली छाई होती है। इसलिए इसे “हरियाली तीज” कहा जाता है।

साल 2025 में Hariyali Teej का त्योहार 26 जुलाई को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं नए वस्त्र पहनती हैं, हाथों में मेंहदी लगाती हैं, झूले झूलती हैं और पारंपरिक गीतों के साथ उत्सव मनाती हैं। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक जुड़ाव का भी प्रतीक है।

Hariyali Teej 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, 26 जुलाई 2025 को रात 10 बजकर 41 मिनट पर तृतीया तिथि प्रारंभ होगी और 27 जुलाई को रात 10 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगी। व्रत के लिए तृतीया का प्रारंभ होना महत्वपूर्ण होता है, इसलिए Hariyali Teej का व्रत 26 जुलाई को किया जाएगा।

Hariyali Teej
Hariyali Teej

पूजा के लिए शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार हैं:

  • ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:16 से 4:58 तक रहेगा,
  • अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:00 से 12:57 तक,
  • विजय मुहूर्त दोपहर 2:43 से 3:38 तक,
  • गोधूलि मुहूर्त शाम 6:34 से 6:57 तक
  • और निशिता मुहूर्त रात 12:07 से 12:59 तक रहेगा।

इन समयों में पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है।

Hariyali Teej की पूजा विधि और व्रत का नियम

इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं और नए वस्त्र पहनकर खुद को सजाती हैं। फिर वे मंदिर या पूजा स्थल की सफाई करके भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियों की स्थापना करती हैं। पूजा में रोली, चावल, फूल, धूप, दीपक, मिठाइयां और हरे वस्त्र आदि का उपयोग होता है।

महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं यानी पूरे दिन कुछ भी नहीं खाती-पीतीं। पूजा में व्रत कथा का पाठ करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है। कथा सुनने के बाद महिलाएं एक-दूसरे को तीज की बधाइयां देती हैं, उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं और झूला झूलने की परंपरा भी निभाई जाती है। पूजा के बाद प्रसाद बांटा जाता है और जरूरतमंदों को दान देने की परंपरा भी निभाई जाती है।

सावन और Hariyali Teej का गहरा संबंध

Hariyali Teej सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आती है। सावन में वातावरण हरियाली से भर जाता है और मौसम सुहाना हो जाता है। यही समय प्रकृति की सुंदरता का होता है। महिलाएं इसी समय हरे वस्त्र पहनकर, हरे चूड़ियों से सजकर तीज मनाती हैं। इस बार सावन का महीना 11 जुलाई से शुरू होगा और 9 अगस्त को समाप्त होगा।

सावन में पड़ने वाले सोमवार भी खास होते हैं, जिन्हें “सावन सोमवार” कहा जाता है। 2025 में पहला सोमवार 14 जुलाई, दूसरा 21 जुलाई, तीसरा 28 जुलाई और चौथा सोमवार 4 अगस्त को पड़ेगा। इन दिनों में शिव पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। Hariyali Teej भी सावन के बीच में पड़ने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है।

धार्मिक मान्यता और कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कई जन्मों तक कठोर तप किया था। तृतीया के दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को स्वीकार किया था, इसलिए यह दिन सुहाग का प्रतीक माना जाता है। इसी कारण महिलाएं हरियाली तीज के दिन शिव-पार्वती की पूजा कर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।

कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने और सच्चे मन से पूजा करने से वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है और पति-पत्नी के रिश्तों में मिठास बनी रहती है। अविवाहित लड़कियां भी इस दिन अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं।

Shiv Mantra का जाप क्यों जरूरी है?

हरियाली तीज के दिन शिव मंत्रों का जाप करने से मानसिक शांति मिलती है और नकारात्मकता दूर होती है। कुछ प्रभावशाली मंत्र इस प्रकार हैं—

  • ॐ नमो भैरवाय स्वाहा।
  • ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय भयं हन।
  • ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय शत्रु नाशं कुरु।
  • ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय तंत्र बाधाम नाशय नाशय।

इन मंत्रों का उच्चारण भावपूर्वक करना चाहिए ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।

Hariyali Teej
Hariyali Teej

कंक्लुजन 

Hariyali Teej नारी शक्ति, सौंदर्य, भक्ति और वैवाहिक प्रेम का अनूठा संगम है। यह त्योहार न केवल पारंपरिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह महिलाओं को सामाजिक रूप से भी जोड़ता है। जब महिलाएं तीज गीत गाती हैं, झूले पर झूलती हैं और मेंहदी रचाती हैं, तो पूरा वातावरण उमंग और उल्लास से भर जाता है।

साल 2025 में Hariyali Teej 26 जुलाई को मनाई जाएगी। इस शुभ अवसर पर महिलाएं संकल्प लें कि वे न केवल अपने परिवार के लिए, बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाएंगी। यह पर्व सिर्फ परंपरा नहीं, एक जीवंत संस्कृति की पहचान है जिसे हमें गर्व से आगे बढ़ाना है।

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