Bison Kaalamaadan Movie Rivew: डायरेक्टर मारी सेल्वराज की एक शानदार तमिल फिल्म है। जिसमें ध्रुव विक्रम लीड रोल में नजर आते हैं। यह फिल्म 17 अक्टूबर 2025 (दिवाली) को रिलीज़ हुई और पहले दिन से ही दर्शकों के बीच चर्चा में है। फिल्म सिर्फ खेल (कबड्डी) पर नहीं है। बल्कि इसमें जाति, समाज और इंसान की इज़्ज़त की लड़ाई को भी गहराई से दिखाया गया है।
कहानी
कहानी है किट्टन (ध्रुव विक्रम) की, जो तमिलनाडु के एक छोटे से गांव वनथी में रहता है। उसका सपना है कि वह बड़ा कबड्डी खिलाड़ी बने, लेकिन जातिगत भेदभाव और समाज की दीवारें उसकी राह में बार-बार रुकावट बनती हैं। गांव में दो बड़े गुट हैं पंडियाराजा (आमीर) और कंथासामी (लाल), जिनकी आपसी राजनीति और नफरत में किट्टन की जिंदगी फंस जाती है। फिल्म में बाइसन का कंकाल एक प्रतीक की तरह दिखाया गया है जो किट्टन की पहचान, उसके गर्व और उसकी लड़ाई की याद दिलाता है। पहला हिस्सा गांव की कहानी और टकराव को धीरे-धीरे सेट करता है, जबकि दूसरा हिस्सा ज़्यादा इमोशनल और तीव्र हो जाता है।
कलाकार और एक्टिंग
ध्रुव विक्रम ने शानदार अभिनय किया है। उन्होंने किरदार में पूरी मेहनत लगाई है चाहे कबड्डी के मैदान का जोश हो या दर्द से भरे सीन, हर जगह वो असली लगते हैं। पासुपथी (किट्टन के पिता) ने बहुत भावुक और दमदार रोल निभाया है। वहीं राजिशा विजयन (बहन के रूप में) और अनुपमा परमेश्वरन (रानी के किरदार में) दोनों ने अपनी भूमिकाएं बखूबी निभाई हैं। हालांकि अनुपमा का रोल थोड़ा छोटा महसूस होता है। सपोर्टिंग कास्ट में आमीर, लाल और कलैयारासन ने फिल्म को और मजबूत बनाया है।
निर्देशन, म्यूज़िक और तकनीकी पहलू
डायरेक्टर मारी सेल्वराज ने फिर साबित किया है कि वह सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि समाज की सच्चाई को पर्दे पर उतारना जानते हैं।
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी बेहद खूबसूरत है मिट्टी, गांव, कबड्डी का खेल और त्योहारों के सीन असली लगते हैं। निवास के. प्रसन्ना का म्यूज़िक फिल्म की जान है खासकर गाने “थीक्कोलुथी” और “रेक्का रेक्का” जबरदस्त हैं। फिल्म की लंबाई लगभग 2 घंटे 50 मिनट है। इसलिए पहले हाफ में थोड़ा स्लो महसूस होता है। लेकिन दूसरा हाफ दर्शकों को पकड़ लेता है।
क्या अच्छा है और क्या कमजोर
अच्छा:
- ध्रुव विक्रम की एक्टिंग और फिल्म की भावनात्मक गहराई।
- कबड्डी सीन और सामाजिक मुद्दों का मेल।
- असली लोकेशन और शानदार म्यूज़िक।
कमजोर:
- कहानी कुछ जगहों पर धीमी हो जाती है।
- कुछ किरदारों को ज़्यादा स्क्रीन टाइम मिलना चाहिए था।
- हिंसक दृश्य सभी दर्शकों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकते।
निष्कर्ष
सिर्फ एक खेल फिल्म नहीं है। यह आत्मसम्मान, समाज और संघर्ष की कहानी है। फिल्म दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है और अंत तक दिल को छू जाती है। अगर आपको इमोशन और रियलिटी के साथ बना सिनेमा पसंद है। तो ये फिल्म ज़रूर देखिए।
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